Jyeshtagouri Vrat and Kumkumarchan Vidhi aur Devi ki Achal bharai ka mahatva (Hindi)



























(The Blog  is reverently for all the seekers of truth, lovers of wisdom and   to share the Hindu Dharma with others on the spiritual path and also this is purely  a non-commercial blog)

 
 

Jyeshtagouri Vrat



1. Jyeshthagouri Vrat

All the wives of Deities harassed by the battle between the Deities and the demons prayed to Srimahalakshmi. Appeased by the prayer, Srimahalakshmi vanquished the demons on Ashtami, that is, the eighth day of Bhadrapad and relieved the Deities of the danger. In the memory of this incident and for the protection of their husbands by Srimahalakshmi, the women perform the vrat of Jyeshthagouri on the day of Shukl Ashtami of Bhadrapad

1.1 Spiritual reason underlying invocation of Gouri

The spiritual science underlying the invocation of Gouri is the welcome of the Deity of Knowledge and the supernatural powers which accompany Sri Ganeshji and to surrender to them with a sense of gratitude. Gouri is invoked to conserve the frequencies of energy generated in the house by the worship of Sri Ganeshji. The worshipper gets the benefit of these frequencies with the worship of Gouri.

1.2 Science underlying invocation of Gouri during the pre-determined time

According to the Scriptures, the time of invocation of Gouri is pre-determined. Gouri is to be invoked during that time only. The principle of a specific Deity comes on Earth in higher proportion during a specific time. On invocation of the Devi principle in the time pre-determined by the Scriptures, the principle is attracted at the venue of the worship in higher proportion and the family members get its benefit for a longer period.

1.3 Method of vrat

Gouri is installed on the Mul constellation that comes after Rushipanchami. This vrat is observed for three days. On the first day, when Gouri is invoked, the replicas of the Holy feet of Gouri are drawn on the main gate and everywhere in the house. For this turmeric powder-vermilion or rangoli is used.
In some regions, Devi is ceremoniously installed on the first Friday of the month of Shravan. On the day of Gouripujan that comes after Sriganeshpujan in the month of Bhadrapad, Jyeshthagouri is ceremoniously installed.
In some regions on the day of Gouri invocation, women worship the Deity of Water, that is, Jaladevata near the source of water. A kalash, that is, a copper pitcher is filled with water and the leaves of mango tree, champak tree etc. are placed in it. Five stones are also put into it. They worship the kalash. This is also called ‘Gangagouri’.
On the second day, Gouri is worshipped and offered ‘mahanaivedya’.
On the third day, Gouri is immersed in flowing water.
Married women are invited to the home as per convenience on one of the three days for the ceremony of haldi-kumkum.
Spiritual experience - While taking darshan of the consecrated Gouri, experiencing one Gouri in a saviour form and the other in a destroyer form and being advised by the Gouri in the saviour form to do sadhana with full dedication: On 2nd August 2006, during Gouripujan when I took darshan of Gouri, I experienced one Gouri in a saviour form and the other in a destroyer form. The Gouri in the saviour form said, “Get detached from the materialistic world, that is, Maya and do sadhana with full dedication”. She told me this same thing 3-4 times. At that time, my spiritual emotion was awakened and I began to go into a meditative state. - Lata Dhavalikar, Goa

1.4 The ritualistic worship of the metal pot (kalash) during Gouripujan

·         In the metal pot of Gouripujan there is 1 % Divine principle, 2 % Chaitanya and 2 % Energy (Shakti).
·         A flow of Divine principle and Chaitanya in the form of Apa-tattva is attracted in the metal pot of Gouripujan.
A. Spirals of Divine principle and Apa-tattva are generated in the metal pot of Gouripujan.
·         A flow of Energy (Shakti) is attracted.
A. A spiral of Energy (Shakti) is generated and it moves in active form.
B. A flow of Energy (Shakti) is emitted into the environment.
C. Particles of Energy spread into the environment.
Other points:
·         At the time of Gouripujan two types of Gouri, namely Jyeshtha and Kanishtha are worshipped. It was perceived that Jyeshtha and Kanishtha are the saviour (tarak) and destroyer (marak) Energies of Sri Ganeshji respectively.
·         Gouri does the task of sustaining the Ganesh Principle in the environment after Ganesh Chaturthi.
·         Due to the masks made in the metal pot, the married woman is benefitted of the presence of the Deity. The Sagun form of the Deity was perceived in the masks made in the metal pot. Hence, the Nirgun principle of the Deity is attracted in the metal pot in the Sagun form and the woman who worships it is benefitted.
·         Due to Gouripujan Energy is emitted in a greater proportion into the environment.

For more information on this article, read Sanatan Sanstha's publication - 'Holy festivals, Religious festivals and Vowed religious observances'


 



Kumkumarchan Vidhi aur Devi ki Achal bharai ka mahatva (Hindi)


 

१. कुमकुमार्चन

देवीकी उपासनामें कुमकुमार्चनका महत्वपूर्ण स्थान है । अनेक स्थानोंपर नवरात्रिमें भी विशेष रूपसे यह विधि करते हैं । देवी सहस्त्रनाममें दिए देवीके एक-एक नामका उच्चारण कर अथवा देवीका नामजप करते हुए देवीको एक-एक चुटकीभर कुमकुम अर्पण करनेको `कुमकुमार्चन' कहते हैं ।

कुमकुमार्चन करते समय सर्वप्रथम देवीका आवाहन कर पूजन करते हैं । उपरांत देवीके नामका उच्चारण कर देवीकी मूर्ति पर कुमकुम अर्पण करते हैं।   देवीके चरणोंसे आरंभ कर और सिरतक चढाकर, उन्हें कुमकुमसे आच्छादित कर देते हैं । कुमकुमार्चन पूर्ण होनेपर देवीकी आरती उतारते हैं । सबके कल्याणके लिए प्रार्थना करते हैं।

१.१ कुमकुमार्चनका शास्त्रीय आधार

कुमकुमका रंग लाल होता है । मूल कार्यरत शक्तितत्त्वकी निर्मिति लाल रंगके प्रकाशसे हुई है । कुमकुमकी विशिष्ट सुगंध होती है । इस सुगंधकी तरंगें वातावरणमें प्रक्षेपित होती रहती हैं। मूल शक्तितत्त्वके बीजकी सुगंध कुमकुमकी सुगंधके समान ही होती है । कुमकुमद्वारा प्रक्षेपित इन गंध-तरंगोंकी ओर ब्रह्मांडमें विद्यमान शक्तितत्त्वकी तरंगें अल्प कालावधिमें आकृष्ट होती हैं । इसलिए मूल शक्तितत्त्वके रंगके एवं गंध तरंगोंके प्रतीकस्वरूप कुमकुमद्वारा अर्चन कर मूर्तिमें देवीके सगुण तत्त्वको जागृत करते हैं । इससे पूजकको इन शक्तितत्त्वकी तरंगोंका लाभ होता है । 

कुंकुमार्चनमें प्रयोग किया गया कुमकुम, देवीपूजनके फलस्वरूप देवीकी शक्तिसे संचारित हो जाता है । इसके उपयोगसे लोगोंको विविध अनुभूतियां होती है ।

१.२ कुमकुमार्चनके परिणामस्वरूप एक साधिकाको हुई एक बोधप्रद अनुभूति

कुमकुमार्चन हेतु प्रयोग किए गए कुमकुमको मस्तकपर लगानेसे प्रार्थना एवं नामजप भावपूर्ण होकर उत्साह प्रतीत होना

सत्ताईस जनवरी दो सहस्र चारके दिन वे गोवाके श्री सातेरी देवालयमें कुमकुमार्चन हेतु गई थी । उनके द्वारा चढाए गए कुमकुमसे पुजारीने देवीके मूर्तिका अर्चन किया । उसके उपरांत देवीसे प्रार्थना कर पुजारीने वह कुमकुम श्रीमती रक्षंदाजीको दिया । कुमकुम लेते हुए श्रीमती रक्षंदाजीने देवीसे प्रार्थना की, `हे देवीमां, इस कुमकुमसे हमें शक्ति मिले, हमारी प्रार्थना और नामजप उत्तम ढंगसे हो ।' तबसे वे जब भी अपने मस्तकपर देवीके प्रसादके रूपमें मिला कुमकुम लगाती हैं, तब उनका नामजप आरंभ हो जाता है और एक अनोखा उत्साह प्रतीत होता है । - श्रीमती रक्षंदा राजेश गांवकर, गोवा । 

इस अनुभूतिसे देवीको कुमकुमार्चन करनेका और प्रसादस्वरूप वह कुमकुम लगानेका महत्त्व समझमें आता है ।

२. देवीकी आंचलभराई

देवीपूजन अंतर्गत आंचलभराई की विधि की जाती है । आंचलभराई अर्थात् देवीको साडी, चोली-वस्त्र और नारियल अर्पण कर, देवीपूजन संपन्न करना ।

२.१ देवीकी आंचलभराईका महत्त्व

देवीको साडी एवं चोली-वस्त्र अर्पण करनेका अर्थ है, अपनी आध्यात्मिक उन्नति अथवा कल्याणके लिए देवीके निर्गुण तत्त्वको, सगुणमें आनेके लिए आवाहन करना । देवीकी आंचलभराई करते समय, प्रत्यक्ष कार्यकी सफलताके लिए देवीसे प्रार्थना करते हैं । इससे पूजनद्वारा कार्यरत देवीके निर्गुण तत्त्वको, साडी एवं चोली-वस्त्रके माध्यमसे, मूर्त सगुण रूपमें साकार होनेके लिए सहायता मिलती है । 

देवीकी आंचलभराई अपनी-अपनी कुलपरंपराके अनुसार अथवा प्रांतानुसार भिन्न प्रकारसे होती है ।  उत्तर भारतमें देवी मांको लाल चुनरी चढाते हैं । सामान्यत: देवीकी आंचलभराई करते समय देवीको यथाशक्ति साडी और चोली-वस्त्र अथवा केवल चोली-वस्त्र अर्पण करते हैं । विशिष्ट देवीको विशिष्ट रंगकी साडी एवं चोली-वस्त्र अर्पण करनेसे उस देवीका तत्त्व संबंधित व्यक्तिके लिए अल्पावधिमें कार्यरत होता है ।
कुछ देवियोंके नाम एवं उनसे संबंधित रंग 
१. श्री दुर्गादेवीको लाल
२. श्री महालक्ष्मीको लाल एवं केसरी
३. श्री महासरस्वतीदेवीको श्वेत एवं लाल
४. श्री महाकालीको जामुनी एवं लाल रंगके वस्त्र अर्पण करने चाहिए ।
इससे स्पष्ट होता है आंचलभराई अंतर्गत किस देवीको कौनसे रंगका वस्त्र अर्पण करना चाहिए । इससे यह भी स्पष्ट होता हैं, कि लाल रंगमें शक्तितत्त्व आकृष्ट करनेकी क्षमता सर्वाधिक होती है ।

२.२ देवीकी आंचलभराईकी उचित पद्धति

१. देवीको अर्पण करनेके लिए सूती अथवा रेशमी साड़ीका चयन कीजिए । सूती एवं रेशमी धागोंमें देवतासे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें ग्रहण कर, उन्हें संजोकर रखनेकी क्षमता अन्य धागोंकी तुलनामें अधिक होती है ।
२. देवीका आंचल भरनेके लिए थालीमें साडी रखकर उसपर चोली-वस्त्र, नारियल एवं थोडे चावल रखिए । ध्यान रहे, नारियलकी शिखा देवीकी ओर हो ।
३. यह सर्व सामग्री हाथोंकी अंजुलिमें लेकर, अंजुलि सीनेके सामने कर देवीसमक्ष शरणागत भावसे खडे रहिए ।
४. चैतन्य प्राप्ति और आध्यात्मिक उन्नति हेतु देवीसे भावपूर्ण प्रार्थना कीजिए । इससे सगुण देवीतत्त्वके जागृत होनेमें सहायता मिलती है ।
५. आंचलभराईकी सामग्रीको देवीके चरणोंमें अर्पित कीजिए और उसपर चावल चढाइए ।
६. अंतमें देवीको नमस्कार कीजिए ।
इस प्रकार देवीकी आंचलभराई करनेसे देवीतत्त्वका लाभ होता है । संभव हो, तो देवीके चरणोंमें अर्पित वस्त्रको उनके प्रसादके रूपमें स्वीकार कर परिधान करना चाहिए तथा नारियलको प्रसादके रूपमें ग्रहण करना चाहिए । देवीतत्त्वसे संचारित वस्त्र प्रसादके रूपमें परिधान करनेसे देवीतत्त्वका लाभ मिलता रहता है । देवीकी आंचलभराईमें अभी बताई गई सामग्रीका उपयोग करनेसे सूक्ष्म स्तरपर जो प्रक्रिया होती है, वो जान लेते हैं ।  

२.३ देवीके आंचलभराईके सूक्ष्म-परिणाम

नारियल की शिखाकी ओर देवीतत्त्व आकृष्ट होता है । इस तत्त्वको साड़ी एवं चोली-वस्त्रमें संचारित करनेमें नारियल सहायक होता है । नारियल की सहायतासे यह तत्त्व साड़ी एवं चोली-वस्त्रमें संचारित होता है । साथ ही, नारियल की शिखासे प्रक्षेपित तरंगोंके कारण, जीवके शरीरके चारों ओर सुरक्षा-कवचका निर्माण होता है । देवीको अर्पित वस्त्रसे पृथ्वीतत्त्वकी सहायतासे सात्त्विक तरंगें प्रक्षेपित होती हैं । नारियल-पानीमें विद्यमान आपतत्त्वकी सहायतासे, नारियलसे आपतत्त्वयुक्त तरंगे प्रक्षेपित होती हैं । इन तरंगोंके कारण, देवीको अर्पित वस्त्रसे प्रक्षेपित तरंगें गतिमान एवं कार्यरत होती हैं । इन तरंगोंसे पूजक महिलाके देहके चारों ओर सुरक्षा-कवचकी निर्मिति होनेमें सहायता मिलती है ।

इस सामग्रीके समान ही चावल भी चैतन्य ग्रहण एवं प्रक्षेपित करनेमें अग्रणी है । इसलिए आंचलभराईमें सर्वसमावेशक चावलका उपयोग किया जाता है । आंचलभराईके फलस्वरूप देवीको अर्पित साडी और चोली-वस्त्र देवीतत्त्वसे आवेशित हो जाते हैं । इन वस्त्रोंमें विद्यमान सात्त्विक तरंगोंके कारण, पूजक महिलाके प्राणदेह एवं प्राणमयकोषकी शुद्धि होनेमें सहायता मिलती है ।

२.४ देवीके लिए अर्पित साडी परिधान करनेसे एक साधिकाको हुई बोधप्रद अनुभूति ।

देवीको अर्पित साडी प्रसाद समझकर पहननेसे प्राणशक्ति बढना और शरीरके चारों ओर सुरक्षाकवचकी निर्मिति होना

प्रतिदिन अधिकाधिक सात्त्विकताका लाभ हो, इसके लिए मैं सात्त्विक पोशाकके रूपमें साडी पहनती हूं । इससे मुझे सेवा करते हुए उत्साहका अनुभव होता है । एक दिन मैनें देवीके लिए अर्पित साडी उनका प्रसाद समझकर पहनी । इससे मेरी प्राणशक्ति बढ गयी । मुझे अपने शरीरके चारों ओर चैतन्यके सुरक्षाकवचकी निर्मितिका भान हुआ । प्रतिदिन अनिष्ट शक्तियोंके बाह्य आक्रमणोंके कारण मुझे सवेरे जागनेपर प्राणशक्ति एवं उत्साहका अभाव प्रतीत होता था । परंतु जिस दिन मैने देवीके लिए अर्पित साडी पहनी, उस दिन मुझे ऐसा कोई कष्ट नहीं हुआ । मुझे कष्ट होते हैं, इस बातका ही विस्मरण हो गया । कु. सुषमा पेडणेकर, गोवा । 

२.५ देवीकी आंचलभराई करनेकी सामग्री अंजुलिमें लेकर, विशिष्ट मुद्रामें खडे रहनेके परिणाम

देवीकी आंचलभराई करते हुए, हाथोंकी जो मुद्रा बनती है, उससे पूजक महिलाके देहमें विद्यमान कुंडलिनीकी तीन प्रधान नाडियोंमेंसे चंद्रनाड़ी कार्यरत होती है । महिलाके मनोमयकोषमें सत्त्वकणोंकी वृद्धि होनेमें सहायता होती है । देवतासे प्रक्षेपित सात्त्विक तरंगें हाथोंकी उंगलियोंद्वारा महिलाके देहमें संचारित होती हैं । इससे उसके देहमें विद्यमान कुंडलिनीके चक्रोंमें से अनाहत चक्र कार्यरत होता है । फलस्वरूप महिलाके मनमें देवीके प्रति भाव जागृत होता है । इससे महिलाके स्थूल एवं सूक्ष्म देहोंकी शुद्धि होनेमें सहायता मिलती है ।

इस मुद्राके कारण पूजक महिला देवताके समक्ष अधिकाधिक विनम्र हो जाती हैं । महिलाकी चंद्रनाडी कार्यरत होनेसे उसका मन शांत होता है । देवीके प्रति भाव जितना अधिक होता है, उतने अधिक कालतक पूजाविधिसे प्राप्त सात्त्विकता बनी रहती है

देवीको अर्पित की जानेवाली साडीपर अन्य सर्व सामग्री रखी जाती है । कुछ स्थानोंपर यह साडी छह गजकी होती है, तो कुछ स्थानोंपर नौ गजकी । पूजकमें देवताके प्रति भावके अनुसार वह देवीको किसी भी प्रकारकी साड़ी अर्पित करे, उसके भावके कारण उसे अपेक्षित लाभ होता ही है; परंतु प्रत्येक व्यक्तिमें देवताके प्रति भाव नहीं होता । इसलिए सामान्य जनोंके लिए प्रत्येक कृति शास्त्रके अनुसार करना अधिक लाभदायक है । देवीको अर्पित की जानेवाली साडी शास्त्रके अनुसार किस प्रकारकी होनी चाहिए, यह समझ लेना आवश्यक है ।

देवीको नौ गजकी साडी अर्पण करना अधिक उचित होनेका अध्यात्मशास्त्रीय कारण मूल निर्गुण शक्ति अर्थात श्री दुर्गादेवीमें शक्तितत्त्वके सर्व नौ रूप समाए हुए हैं । `' का आंकड़ा श्री दुर्गादेवीके कार्य करनेवाले नौ प्रमुख रूपोंका प्रतिनिधित्व करता है । नौ गजकी साडीके नौ स्तर देवीके कार्य करनेवाले नौ रूप दर्शाते हैं । देवीको नौ गजकी साडी अर्पित करना अर्थात देवीको उनके नौ अंगोंसहित प्रकट होकर कार्य करनेके लिए आवाहन करना ।

इस दृष्टीसे देवीको छह गजकी साडीकी अपेक्षा, नौ गजकी साडी अर्पित करना अधिक योग्य है । परंतु किसी कारणवश नौ गजकी साडी अर्पित करना संभव न हो, तो छह गजकी साडी अर्पित कर सकते हैं ।

देवीको नौ गजकी साडी अर्पित करनेके समानही विशिष्ट आकारका चोली-वस्त्र भी अर्पित करते है । देवीको त्रिकोणीय आकारमें चोली-वस्त्र अर्पित करनेका कारण त्रिकोण आकार ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश इनमेंसे ब्रह्माकी इच्छाशक्तिसे संबंधित है । ब्रह्मांडकी इच्छा-तरंगोंका भ्रमण दाइंर्से बाइंर् ओर त्रिकोण आकारमें होता है । देवीको चोली-वस्त्र अर्पण करते समय त्रिकोण आकार बनाकर अर्पित करनेका अर्थ है, अपनी आध्यात्मिक उन्नतिके लिए आदिशक्ति श्री दुर्गादेवीकी इच्छाशक्तिकी तरंगें प्रबल कर उनकी कृपा प्राप्त करना । यही कारण है कि, देवीको चोली-वस्त्र त्रिकोण आकारमें अर्पित करते हैं ।















Om Tat Sat
                                                        
(Continued...) 


(My humble salutations to Hindu Jagruti for the collection)


(My humble salutations to Sanatan Sanstha and Hindu Jagruti for the collection)

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